बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. निरीक्षण विधि से आप क्या समझते हैं?
2. निरीक्षण विधि के विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
3. प्रेक्षण कितने प्रकार का होता है?
4. प्रेक्षण विधि की उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
5. प्रेक्षण विधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
(Observation Method of Human Development)
सामाजिक विज्ञानों में अध्ययन के प्रायः प्रयोग की जाने वाली विधि प्रेक्षण या निरीक्षण विधि (Observation method) है। इस विधि के द्वारा विकासात्मक प्रतिमानों का अध्ययन सरलतापूर्वक किया जा सकता है। निरीक्षण विधि को भिन्न-भिन्न विद्वानों ने विभिन्न रूपों में परिभाषित किया है, जिसमें से कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं-
" निरीक्षण से तात्पर्य व्यवहार को उसी रूप में देखने से है, जिस रूप में वह प्रदर्शित हो रहा है।' -शैफर (Shaffer, 1994)
"प्रेक्षण विधि की अवधारणा से तात्पर्य परिकल्पनाविहीन जाँच, प्राकृतिक परिवेश में घटना का निरीक्षण, शोधकर्ता द्वारा हस्तक्षेप का अभाव, अचयनात्मक रूप में विवरण संग्रह और स्वतन्त्र परिवर्त्यो में प्रहस्तन न करना है।
"The term observation method is often used to refer to hypothesis free inquiry, working at events in natural surrounding, non-intervention by the resercher, unselective recording and avoidance of manipulation of independent variables." -वीक (Weick, 1969)
इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रेक्षण विधि के द्वारा विकास या व्यवहार का अध्ययन बालक के प्राकृतिक परिवेश में, ज्यों का त्यों निरीक्षण करके किया जाता है। जैसे घर के भीतर, विद्यालय में या खेल के मैदानों में बालकों के व्यवहारों तथा विकासात्मक प्रतिमानों का निरीक्षण तथा विश्लेषण करके उपयोग निष्कर्ष प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
(Steps of Observation Method)
प्रेक्षण विधि से अध्ययन करते समय निम्नलिखित सोपानों का प्रयोग किया जाता है-
1. प्रेक्षण योजना (Observation Schedule) - सबसे पहले जिस व्यवहार का निरीक्षण या प्रेक्षण करना होता है उसकी कार्य योजना बनाई जाती है। इसके अन्तर्गत प्रतिदर्श, प्रेक्षण स्थल, उपकरण, व्यवहार अंकण विधि आदि का निर्धारण किया जाता है।
2. व्यवहार का प्रेक्षण (Observation of Behaviour) - प्रेक्षण के इस चरण के अन्तर्गत व्यवहार का निर्धारित कार्य योजना के अनुसार, प्रक्रिया परिवेश में निरीक्षण किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर कैमरा आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है।
3. व्यवहार का अंकण (Recording of Behaviour) - प्रेक्षण से प्राप्त सूचनाओं का पूर्व निर्धारित तथा तात्कालिक उद्देश्यों के अनुरूप अंकण किया जाता है। इस कार्य के लिये भी आवश्यकतानुसार कैमरा आदि का प्रयोग किया जाता है।
4. सारणीयन एवं विश्लेषण (Tabulation and Analysis) - यदि सूचनायें मात्रात्मक हैं तो उन्हें सारणीबद्ध कर दिया जाता है। इसके पश्चात् सूचनाओं का विश्लेषण किया जाता है ।
5. व्याख्यात्मक निष्कर्ष (Interpretation and Conclusion ) - प्राप्त सूचनाओं तथा प्रदत्तों के विश्लेषण से जो परिणाम मिलते हैं उनकी यथोचित व्याख्या की जाती है और व्यवहार एवं विकास के बारे में निष्कर्ष एवं अनुवाद आदि प्रस्तुत किये जाते हैं।
(Types of Observation)
प्रेक्षण निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-
1. अनियंत्रित प्रेक्षण (Uncontrolled Observation ) - इस विधि में अध्ययनकर्ता व्यवहार का अध्ययन क्रमबद्ध रूप में तो करता है. परन्तु परिस्थिति में कोई परिवर्तन या नियंत्रण नहीं करता है । अनियंत्रित प्रेक्षण विभिन्न प्रकार से किया जाता है जैसे- प्रतिदिन प्रेक्षण, परिस्थितिजन्य प्रतिदर्श प्रेक्षण, खेल तकनीकि प्रेक्षण, समय प्रतिदर्श प्रेक्षण आदि । इस प्रकार के प्रेक्षण में अध्ययनकर्ता प्रयोज्य या प्रतिदर्श के व्यवहार का निरीक्षण प्राकृतिक एवं स्वाभाविक परिस्थितियों में करता है।
2. नियंत्रित प्रेक्षण (Controlled Observation) - नियन्त्रित प्रेक्षण का विकास के अध्ययन में विशेष महत्व है। इस प्रकार के प्रेक्षण में परिस्थितियों को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि बालक के व्यवहार में इसका प्रभाव न पड़ने पाये और व्यवहार का प्रदर्शन बराबर बिना बाधा के होता रहे और उस पर प्रायोगिक विधि की कृत्तिमता का भी प्रभाव नहीं पड़ता है। वाटसन (1925), गेसेल (1932, 35), बुलहर (1930), लुमिस (1931) तक बारकर (1930) आदि ने इस विधि का प्रयोग अपने अध्ययन में व्यापक रूप में किया है।
(Utility of Observation Method)
प्रेक्षण विधि की उपयोगिता निम्नलिखित है-
1. व्यवहार का प्रेक्षण पूर्णतः स्वाभाविक परिस्थितियों में किया जाता है। इसमें कृत्रिमता नहीं होती है।
2. अध्ययन की योजना बनाने के लिए यह एक अत्यन्त उपयोगी विधि है।
3. इस विधि में परिस्थितियों को व्यवस्थित करके ठोस परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं ।
4. प्रेक्षकों की संख्या में वृद्धि करके परिणामों को विश्वसनीय बनाया जा सकता है।
5. बड़े प्रतिदर्श का अध्ययन करके परिणामों की विश्वसनीयता को बढ़ाया जा सकता है।
6. विधिवत् प्रेक्षण करके सूक्ष्म परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं ।
7. प्रेक्षण विधि के द्वारा कारण तथा प्रभाव के सम्बन्ध को ज्ञात किया जा सकता है। प्रेक्षण विधि की सीमायें
प्रेक्षण विधि की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
1. यदि प्रेक्षण सूक्ष्मता से न किया जाय तो प्राप्त परिणामों की विश्वसनीयता संदिग्ध होती है।
2. अध्ययनकर्ता के विचारों से प्रभावित होने के कारण निष्कर्ष आत्मनिष्ठ होते हैं ।
3. अलग-अलग निरीक्षणकर्ता एक ही घटना की अलग-अलग व्याख्या कर सकते हैं।
4. इस विधि में यदि प्रेक्षक निष्क्रिय रहता है तो निष्क्रिया के कारण प्रदत्त संग्रह पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है ।
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